Ari ବରୀ (ମାନସା) ପୂଜା ସେନୁରାନ୍: -
ମାନସା ... ଯିଏ ମନର ଆଶା ପୂରଣ କରେ ...
କୃଷି ସମ୍ପ୍ରଦାୟର ଏକ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଉପାସନା ... କୃଷକ ସମ୍ପ୍ରଦାୟ ପାଇଁ ସବୁଠାରୁ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ବିଷୟ ହେଉଛି ବର୍ଷା କିମ୍ବା ଜଳ ... ଏହା ସେମାନଙ୍କ ହୃଦୟର ଆଶା ପୂରଣ କରେ ଯଥା ଉତ୍ତମ ଚାଷର ଇଚ୍ଛା |
ମାନସ ସରବାନ୍ ଏବଂ ଭଦ୍ର ସଙ୍କ୍ରାଇଟ୍ (କେତେକ ସ୍ଥାନରେ ଆସିନ୍ ଏବଂ କାର୍ତ୍ତିକ ସଙ୍କ୍ରାଇଟ୍) ରେ ପାଳନ କରାଯାଇଥିଲା, ଯାହାକୁ ବରୀ (ଅର୍ଥାତ୍ ଜଳ) ସେନୁରାନ୍ (ପୂଜା) ମଧ୍ୟ କୁହାଯାଏ, ଏହା ହେଉଛି ଏହାର ପ୍ରକୃତ ବାସ୍ତବତା, ଯାହା କ୍ଷେତରୁ ଘାଟରେ ପାଣି ଆଣିବା ଦ୍ୱାରା କରାଯାଇଥାଏ | / ପୋଖରୀ / ନଦୀ ପାରିବାରିକ ରୂପରେ, ଘରର ମୁଖ୍ୟ ବ୍ୟକ୍ତି କିମ୍ବା ଗାଁର ସାମୂହିକ ରୂପରେ କେବଳ ନୟା (ଲାୟା) / ପହହାନ୍ / ଦେହ୍ରି (ଦେ uri ରୀ) ପୂଜା କରନ୍ତି | ଏହା ପ୍ରକୃତିର ସର୍ବୋଚ୍ଚ ଶକ୍ତିର ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ପ୍ରାକୃତିକ ଉପାସନା, କ any ଣସି ଦେବୀ କିମ୍ବା ମାତାଙ୍କର ଉପାସନା ନୁହେଁ | ପାରମ୍ପରିକ ଭାବେ, ଡକ୍ ପାହୁଡ୍ ମଧ୍ୟ ଦିଆଯାଏ |
) ଘଟେ।)
ସେମାନଙ୍କର ଇତିହାସ, ସଂସ୍କୃତି ଏବଂ ପରମ୍ପରାକୁ ଜାଣିବା କିମ୍ବା ବୁ understanding ିବା ହେତୁ ଆଜି ଆଦିମ କୃଷି କୃଷି ସମ୍ପ୍ରଦାୟ ବାସ୍ତବତାଠାରୁ ଦୂରେଇ ଯାଉଛନ୍ତି | 'ତୁସୁ ପାରାବ' ଧାନର ଉପାସନା, 'କରାମ ପାରାବ' ହେଉଛି ଭାଇ ଓ ଭଉଣୀଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ପବିତ୍ର ପ୍ରେମର ପ୍ରତୀକ ଏବଂ ନୂତନ ସୃଷ୍ଟିର ପ୍ରତୀକ, 'ବୃନ୍ଦାବନ / ସୋହରାଇ ପାରାବ' ହେଉଛି ପଶୁମାନଙ୍କର ଉପାସନା, 'ସିଜାନା ପାରାବ' ହେଉଛି ଉପାସନା। ଜ୍ଞାନ ... ଇତ୍ୟାଦି ସମସ୍ତେ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ପ୍ରାକୃତିକ ଏବଂ କୃଷି ଭିତ୍ତିକ | ଭାଉଜ ବିହା (ବିବାହ) ରେ ପୁରୋହିତ, ଭାଗନା ମାର୍କି (ମୃତ୍ୟୁ) ରେ ପୁରୋହିତ |
ମ Basic ଳିକ ଧାରଣା: - ଆମର କ festiv ଣସି ପର୍ବ, ପୂଜା ସମାରୋହ କିମ୍ବା ଧାର୍ମିକ ପରମ୍ପରା ଏବଂ ରୀତିନୀତିରେ ମୂର୍ତ୍ତି ପୂଜା ଏବଂ ବ୍ରାହ୍ମଣ ଧର୍ମର କ place ଣସି ସ୍ଥାନ ନାହିଁ | ଯଦି ଏହା କ ewhere ଣସି ସ୍ଥାନରେ ଘଟୁଛି, ତେବେ ଗୋଟିଏ ପଟେ ଏହା ଅନାବଶ୍ୟକ ଖର୍ଚ୍ଚ ସୃଷ୍ଟି କରୁଥିବାବେଳେ ଅନ୍ୟ ପଟେ ଏହା ପାରମ୍ପାରିକ ପ୍ରାକୃତିକ ଉପାସନର ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟକୁ ଅର୍ଥହୀନ କରୁଛି | ଜୋହର | ସ es ଜନ୍ୟ: ପ୍ରସନ୍ନଜିତ୍ ମହାତ୍ମା କାଚିମା |
ଗତ ବର୍ଷ ଠାରୁ ଆମ ଗାଁ # ପହରପୁରର ଭିଡିଓ ...
🙏बारि (मनसा) पूजा🙏 सेंउरन :-
मनसा... मन की आसा पूर्ण करने वाली...
कृषक समुदाय की एक महत्वपूर्ण अराधना ... कृषक समुदाय के लिए सबसे जरुरी चीज होती है - बरसा या जल ... यही इनके मन की आसा - यानि - अच्छी खेती की कामना को पूर्ण करने वाली होती है।
सराबन और भादर सांकराइत (कहीं-कहीं आसिन और कारतिक सांकराइत) को मनाया जाने वाला मनसा जिसे बारि (यानि जल) सेंउरन (अराधना) भी कहते हैं, यही इसकी असली वास्तविकता है, जो खेत/तालाब/नदी से घट में पानी लाकर किया जाता है। अराधना पारिवारिक रूप में घर का मुख्य व्यक्ति या सामूहिक रूप में गाँव का नाया(लाया)/पाहन/देहरि(देउरि) ही करता है। यह पूर्ण रूप से प्रकृति महाशक्ति की प्राकृतिक अराधना है, कोई देवी या माता की पुजा नहीं। पारंपरिक रूप से बत्तख का पाहुड़ भी चढ़ाया जाता है।
(वर्तमान में कुछ काल्पनिक-पौराणिक कथाओं के माध्यम से इसका मूर्तिकरण कर दिया गया है, जिससे इसमें ब्राह्मणवाद का भी प्रवेश हो गया, क्योंकि मूर्ति की चक्षु खोलने के लिए उसके वैदिक मंत्रों की आवश्यकता होती है। जबकि प्राकृतिक अराधना में कोई वैदिक मंत्रोच्चार नहीं होती है।)
अपने इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को ना जानने, ना समझने के वजह से ही आज आदिम कृषि मूलक कृषक समुदाय भटक-भटक कर वास्तविकता से दूर निकलते जा रहे हैं। 'टुसु परब' धान की अराधना, 'करम परब' भाई बहन के पवित्र प्रेम और नवसृजन का प्रतीक, 'बांदना/सोहराइ परब' पशुधन की अराधना, 'सिझानअ परब' ज्ञान की अराधना... इत्यादि सभी पूर्ण रूप से प्राकृतिक और कृषि आधारित। बिहा (शादी) में बहनोइ पुरोहित, मरखि (मरन) में भगना पुरोहित।
मूल कॉन्सेप्ट :- मूर्ति पुजा और ब्राम्हणवाद का हमारे किसी भी परब, सेंउरन-अराधना या धरम-परंपरा एवं रीति-रिवाजों में कहीं कोई स्थान नहीं है। अगर कहीं ऐसा हो रहा है तो एक ओर जहाँ यह एक अनावश्यक खर्च का वहन करवा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह नि:संदेह उस पारंपरिक प्राकृतिक अराधना के उद्देश्य को निरर्थक बना रहा है। जोहार। साभार-प्रसेनजीत महतो काछिमा ।
वीडियो अपना गावँ #पहाड़पुर का पिछले साल का..।
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